एकटक, निरंतर, संस्पर्श
तभी --
नीरस कर्कश गूँज कोई
अनुभूत हूँ,
और हैं---
बोझिल कोमल नयनों में
निखरते सपनों के निराले रंग I
नीरस कर्कश गूँज कोई
बेवजह हिलोरें लगाती है
टूटता है सन्नाटा
झीनी झल्लाहट से
फूटती है कान की सूखी परतें
और फिर---
बिखर जाता है रंग
खो जाता है धुन्ध्लाहट से I I
संभालना अपने को,
इतना आंसा तो नहीं,
काश- इतना तो होता
डूबता अपनी ताल में बेताल
और ये हिलोरें--
चुस्कियों की तरह
आती जाती रह जातीऔर हमेशा होता -
वही ---
बोझिल कोमल नयनों में
निखरते सपनों के निराले रंग ...
रंग ..
निखरते सपनों के निराले रंग ...
रंग ....रंग .....रंग .. रंग I I I
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