Tuesday, November 06, 2007

तुम

तुम रोज कहती हो, तुम अच्छी नहीं हो,
मासूम हो, पगली हो, मगर बच्ची नहीं हो,
लड़ती हो, झगड़ती हो, पर सच्ची नहीं हो,

दिल से शैतान हो, पर झूठी नहीं हो,
खुद से परेशान हो, पर रूठी नहीं हो ‌

गर लगता तुझे, ये मेरी गलतफहमी है,
तो तुझे क्या सोचना, तु क्यूँ सहमी है ‌
तुम सच्ची हो, सचमुच की अच्छी हो,
क्यूँ कहती हो कि, तुम अच्छी नहीं हो ‌ ‌

जो कहना है मुझे, बस तुम कह लेने दो,
जो धुंध है मन में, उसमें ही रह लेने दो,
खशियों मे तेरी, हँसी अपनी सी लेने दो,
मुझे मेरी गलतफहमियों मे जी लेने दो ‌ ‌

इक पल सही, हर दिन आगोश मे सो लेने दो,
दिल जो करे रोने को, साथ अपने रो लेने दो,
तेरी चंचलता की खशबू में, मुझको खो लेने दो ,
तेरी बातों की जादू में, खुद को भिगो लेने दो ‌ ‌

तुम, मुझे मेरी गलतफहमियों मे जी लेने दो,
दो चार घूंट संग, मुस्कुराहटों के पी लेने दो ‌

तेरी ताजगी पे चाहे तो, रोशनी को भी निखर लेने दो,
अपनी सादगी से आज तू, चाँदनी को भी सँवर लेने दो,
गर झुक जाये फलक तो, सितारों को भी बह लेने दो,
तु इतनी प्यारी है, मुझे ये चंदा को भी कह लेने दो ‌ ‌

जो कहना है मुझे, बस तुम कह लेने दो,
मुझे मेरी गलतफहमियों मे रह लेने दो ‌ ‌ ‌ ‌

3 comments:

kaushal said...

kavita bahut badhiya likhte ho. kahi ye tumhare sapno ki raani to nahi?

Unknown said...

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो ?

मैंने माना कि तुम एक पैकर-ए-रानाई हो
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन-आराई हो
तल’अत-ए-मेहर हो, फिरदौस की बरनाई हो
बिन्त-ए-महताब हो, गर्दूं से उतर आई हो

मुझ से मिलने में अब अंदेशा-ए-रुसवाई है
मैंने खुद अपने किए की ये सज़ा पाई है

खाक में आह मिलाई है जवानी मैंने
शोला-जारों में जलाई है जवानी मैंने
शहर-ए-खूबाँ में गँवाई है जवानी मैंने
ख्वाब - गाहों में जगाई है जवानी मैंने

हुस्न ने जब भी इनायत की नज़र डाली है
मेरे पैमान-ए-मुहब्बत ने सिपर डाली है

उन दिनों मुझ पे कयामत का जुनूँ तारी था
सर पे सरशारी-ओ-इशरत का जुनूँ तारी था
माहपारों से मुहब्बत का जुनूँ तारी था
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूँ तारी था

बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
एक रंगीन-ओ-हसीं ख्वाब थी दुनिया मेरी

जन्नत-ए-शौक़ थी बेगाना-ए-आफत-ए-समूम
दर्द जब दर्द न हो, काविश-ए-दर्मां मालूम
खाक थे दीदा-ए-बेबाक में गर्दूं के नुजूम
बज़्म-ए-परवीं थी निगाहों में कनीज़ों का हुजूम

लैली-ए-नाज़ बर-अफ्गंदाह निक़ाब आती थी
अपनी आंखों में लिए दावत-ए- ख्वाब आती थी

संग को गोहर-ए-नायाब-ओ-गराँ जाना था
दस्त-ए-पुरखार को फिरदौस-ए-जवाँ जाना था
रेग़ को सिलसिला-ए-आब-ए-रवाँ जाना था
आह ये राज़ अभी मैंने कहाँ जाना था

मेरी हर फ़तह में है एक हज़ीमत पिन्हाँ
हर मसर्रत में है राज़-ए-ग़म-ओ-हसरत पिन्हाँ

क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार
मेरी फरियाद-ए-जिगर दोज़, मेरा नाला-ए - जार
शिद्दत-ए-कर्ब में डूबी हुयी मेरी गुफ़्तार
मैं कि खुद अपने मज़ाक-ए-तरब आगीं का शिकार

वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहाँ से लाऊँ
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहाँ से लाऊँ

मेरे साये से डरो तुम मेरी कुरबत से डरो
अपनी जुर्रत की कसम, अब मेरी जुर्रत से डरो
तुम लताफ़त हो अगर मेरी लताफ़त से डरो
मेरे वादे से डरो मेरी मुहब्बत से डरो

अब मैं अल्ताफ़-ओ-इनायत का सज़ावार नहीं
मैं वफ़ादार नहीं, हाँ मैं वफ़ादार नहीं

अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो?

-- मजाज लखनवी

शब्दार्थ --

पैकर - ए - रानाई = साकार सौन्दर्य
चमन - ए - दहर = संसार रूपी वाटिका
रूह - ए - चमन - अाराई = वाटिका को सजाने वाली आत्मा
तलत - ए - मेहर = सूर्य की चमक
फिरदौस की बरनाई = स्वर्ग की जवानी
बिन्त - ए - महताब = चाँद की बेटी
गर्दूँ = आकाश
शहर - ए - खूबाँ = सुंदरियों का शहर
इनायत = कृपा, मेहरबानी
पैमान - ए - मुहब्बत = प्रेम प्रतिज्ञा
सिपर = ढाल, हथियार
जुनूँ = उन्माद
तारी = छाया हुआ
सरशारी - ओ - इशरत = सुख और भोगविलास
माहपार = चाँद का टुकड़ा , सुंदरियां
शहरयार = शहर के मालिक
रकाबत = प्रतिद्वंद्विता
बिस्तर - ए - मखमल - ओ - संजाब = मुलायम खाल और मखमल का बिस्तर
जन्नत - ए - शौक = प्रेम का स्वर्ग
बेगाना - ए - आफत - ए - समूम = जहरीली हवा की विपत्तियों से अपरिचित
काविश - ए - दर्माँ = उपचार की कोशिश
दीदा - ए - बेबाक = निडर आँखें
गर्दूँ के नुजूम = आकाश के नक्षत्र
बज्म - ए - परवीं = सितारों जैसी सुंदरियों की सभा
कनीज = दासी
लैला - ए - नाज बर - अफगंदा निकाब = चेहरे पर नकाब डाले हुए रात
संग = पत्थर
गौहर - ए -=नायाब - ओ - गराँ = दुर्लभ और अमूल्य मोती
दश्त - ए - पुरखार = कांटों भरा जंगल
फिरदौस - ए - जवाँ = युवा स्वर्ग
रेग = रेत
सिलसिला - ए - आब - ए - रवाँ = बहते हुए पानी का सिलसिला
हजीमत = पराजय
पिन्हाँ = निहित
मसर्रत = आनंद, हर्ष
मजरूह = घायल
फरियाद - ए - जिगर - दोज = दिल तोड़ने वाली फरियाद
नाला - ए - जार = दुख भरा आर्तनाद
शिद्दत - ए - कर्ब = तीव्र पीड़ा
गुफ्तार = बातचीत
मजाक - ए - तरब आगीं = प्रसन्न ह्रदय की अभिरुचि
गुदाज - ए - दिल - ए - मरहूम = मृत ह्रदय की कोमलता
जज्बा - ए - मासूम = सरल भावना
कुर्बत = सामीप्य, नजदीकी
लताफत = माधुर्य
अल्ताफ - ओ - इनायत = कृपा, दया

Unknown said...

Wow. बेहतरीन कविता।