Monday, June 15, 2009

अपनी हिन्दी


प्राकृत, पाली, मगधी, अवधी ने सन्यास लिया,
रामायण पश्चात, संस्कृत ने भी बनवास लिया !

शुद्ध-विशुद्ध, सम -सभ्यता - संस्कार - संस्कृति,
समन्वय- सविनय- सम्मान, विकराल विकृति !

अपनी प्यारी हिन्दी का भी बहुत बुरा हाल हुआ,
परसों नहीं, कल नहीं, ये तो बस फिलहाल हुआ !

सुनिये कभी गौर से, सरकारी हिन्दी में वार्तालाप,
तो लगे जैसे, इस SMS युग में, 'रावण' का श्राप !

इधर TV set में, "Thanda मतलब Coca-Cola"
उधर अंग्रेजी में, चाय -चटनी -औ -टिक्का बोला !

आजकल College को कौन कहता महाविद्यालय है,
दो मिनट 'केवल हिन्दी', मानो चढना हिमालय है !

"Hungry क्या",  या फिर, "ये दिल मांगे More",
हिन्दी अखबारों में, Tension-Pension का शोर !

क्या असली, क्या नकली, शब्द तो बस जरिया है,
भावनायें प्रधान, भाषा तो बस बहती दरिया है !

मत रोक, मत टोक इसे,  हो जायेगी यूँ मलिन ये,
पत्थर हुये अगर बड़े तो,  हो जायेगी यूँ कठिन ये !

धारायें कुछ पुराने खोने, तो कुछ,  नये ठहरने दे,
जो सरल है, सफल - सजल है, बस वही रहने दे !

करती जो भी, समावेश अपने में, उसे करने दे,
देसी- विदेसी - परदेसी, भरती है तो, भरने दे !

Hinglish कहें, हिंग्रेजी कहें, क्या फर्क पड़ता है
अपनी हिन्दी है, कहें जैसे अपना दिल कहता है !

तू  बस,  बेबाकी होने की वजह खोजना छोड़ दे,
अपनी हिन्दी तो समन्दर है, बूँदें जोड़ना छोड़ दे !

--------------------------कौशल किशोर विद्यार्थी

3 comments:

sbharti said...

अरे वाह.. बहुत प्यारी कविता है.. कौशल जी आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं..

और सुनाइये क्या हाल है.. कैसा चल रहा है वहाँ...

Anonymous said...

good article....................................................................................................

Sumit Pranav said...

I really liked it!