प्राकृत, पाली, मगधी, अवधी ने सन्यास लिया,
रामायण पश्चात, संस्कृत ने भी बनवास लिया !
शुद्ध-विशुद्ध, सम -सभ्यता - संस्कार - संस्कृति,
समन्वय- सविनय- सम्मान, विकराल विकृति !
अपनी प्यारी हिन्दी का भी बहुत बुरा हाल हुआ,
परसों नहीं, कल नहीं, ये तो बस फिलहाल हुआ !
सुनिये कभी गौर से, सरकारी हिन्दी में वार्तालाप,
तो लगे जैसे, इस SMS युग में, 'रावण' का श्राप !
इधर TV set में, "Thanda मतलब Coca-Cola"
उधर अंग्रेजी में, चाय -चटनी -औ -टिक्का बोला !
आजकल College को कौन कहता महाविद्यालय है,
दो मिनट 'केवल हिन्दी', मानो चढना हिमालय है !
"Hungry क्या", या फिर, "ये दिल मांगे More",
हिन्दी अखबारों में, Tension-Pension का शोर !
क्या असली, क्या नकली, शब्द तो बस जरिया है,
भावनायें प्रधान, भाषा तो बस बहती दरिया है !
मत रोक, मत टोक इसे, हो जायेगी यूँ मलिन ये,
पत्थर हुये अगर बड़े तो, हो जायेगी यूँ कठिन ये !
धारायें कुछ पुराने खोने, तो कुछ, नये ठहरने दे,
जो सरल है, सफल - सजल है, बस वही रहने दे !
करती जो भी, समावेश अपने में, उसे करने दे,
देसी- विदेसी - परदेसी, भरती है तो, भरने दे !
Hinglish कहें, हिंग्रेजी कहें, क्या फर्क पड़ता है
अपनी हिन्दी है, कहें जैसे अपना दिल कहता है !
तू बस, बेबाकी होने की वजह खोजना छोड़ दे,
अपनी हिन्दी तो समन्दर है, बूँदें जोड़ना छोड़ दे !
--------------------------कौशल किशोर विद्यार्थी
3 comments:
अरे वाह.. बहुत प्यारी कविता है.. कौशल जी आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं..
और सुनाइये क्या हाल है.. कैसा चल रहा है वहाँ...
good article....................................................................................................
I really liked it!
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