Thursday, August 25, 2011

लोकतंत्र की अंगड़ाई

(I)
चाय नाश्ता के शोर में,अन्ना की गिरफ़्तारी का ऐलान हुआ,
पल ही पल में 'अनचाही' करतूतों से धरना अभियान हुआ I
सरकार के खिलाफ फिर जन भागेदारी का आह्वान हुआ,
बस चार घंटो बाद ही,बेशर्त 'रामलीला'का प्रावधान हुआ II

किसी ने जोर से गुर्राया -"अभी गतिरोध जारी है"
"सबसे ज्यादा बेईमान सिब्बल और तिवारी है" I
मानो सबको - भ्रस्टाचार मुक्ति की बेकरारी है,
क्या सचमुच करप्सन केवल सरकारी बीमारी है?

कहीं दुकाने बंद, तो कहीं नुक्कड़ नाटक का तड़का,
कहीं आत्मदाह, तो कहीं सरकार की अर्थी झोंका I
कहीं काली पट्टी, तो कहीं जनता का रुख भड़का ,
कहीं बैंड बाजा, तो कहीं कलमाड़ी का पुतला फूँका II

कहीं मशाल, कहीं हवन, तो कोई पूजा पाठ में अटका,
कहीं कारवां चला, तो कभी एकाद पियक्कड़ बहका I
शहर शहर स्पीकर सेट्स से गली चौराहा महका,
बातचीत का दौड़ अभी शुरू, टी वी का डब्बा कड़का II

(II)
आज इसे आम लोगों के हताशी की अभिव्यक्ति समझो,
अपने पांव कुल्हारी वाली कांग्रेसी विपत्ति समझो I
फेसबुक, ट्विटर, यूट्यूब की क्षणिक प्रशस्ति समझो,
ब्लेकमेल, गन प्वाईंट या संवैधानिक विरक्ति समझो II

संघी या अंकल सेम की ही विलायती उत्पत्ति समझो,
मिडल कलासी तमाशा या फिर नक्सली संगति समझो I
सत्ता के शान औ अहंकार को पछारती चुनौती समझो,
भीड़ भगदड़ में शिरकत, पर हिंसा में कटौती समझो II

तोड़ दो मरोड़ दो, मगर ये मसला मत एकलौती समझो,
आग आंधी ना बने, इस कशमकश को बेशकीमती समझो I
कमिटी बने या संसद बहस करे, मौकों की गिनती समझो,
जनता जागरूक है, जन विचार को ना बेइज्जती समझो II

(III)
कितना भी नकार लो, लोकपाल के विचारों का जनसंचार हुआ,
कहीं समर्थन में , कही विरोध में, कोई ना इस्तीफा स्वीकार हुआ I
चमक उठा है आज देश देखो , हर शाम मोमबत्ती का बाज़ार हुआ,
टोपी ले लो, तिरंगा ले लो, खादी का ढेरो सारा फिर कारोबार हुआ II

संबोधनों का, भाषणों का, आश्वाषणों का निरंतर व्यापर हुआ,
सिलसिला बैठकों का, मसौदा पे मसौदा धुआंधार तैयार हुआ I
अनशन में, प्रदर्शन में, सड़क पे, नहर पे, नारेबाजी दमदार हुआ,
पक्ष हो या विपक्ष हो, जबरदस्त आलोचनाओं का शिकार हुआ II

बौलीवुडी धरनार्थियों से, हड़ताली मुहीम जायकेदार हुआ,
हाथ में झंडा, इंटरनेट पे फोटो, किस्सा जरुर मज़ेदार हुआ I
अर्बन पिकनिक, सोसियल रॉक और पॉप निर्विकार हुआ,
सर्वदलीय खिलाफत से, मैदान-चौराहा सिपहसलार हुआ II

IV
बच्चे बूढ़े छात्रों ने, महानगरो ने हुंकार भरा,
उंच नीच, योगी भोगी, सबने संस्कार भरा I
गिनती को भली, मुस्लिमो ने इफ्तार करा,
दलितों ने राग छेरा, सर्वजन का खुमार चढ़ा II

डब्बावाला, रिक्शावाला सबको बुखार लगा,
अरुंधती और अरुणा बीच, अन्ना हज़ार बना I
साईकिल रैली, बैलून रैली, खूब अख़बार भरा,
माएवे-हाएवे, आरोप-प्रत्यारोप बेशुमार चढ़ा II

मध्यस्थ, मुख्या वार्ताकार, सबका अचार हुआ
बैनर पे बैनर, राम रावण सबका दुर्व्यवहार हुआ I
'आज फिर मिलेंगे' , पर प्रस्ताव निर्विचार हुआ,
मोबाइल में एसेमेस का भयानक अत्याचार हुआ II

ज्ञापन-विज्ञापन में प्रचारकों का निरोध बेकार बना,
'मुझे मौत की परवाह नहीं', अन्ना का ललकार बना I
जनता की ताकतों से आगाह सरकार लाचार बना,
अन्ना खा लो, अब जिद छोडो, सबका गुहार बना II

V
सांसदों का घेराव हो, संसद की घेराबंदी हो,
चाहे कितनी भी, जन मोर्चा की पाबन्दी हो I
सर पे लाठी, और सैकड़ों समर्थक बंदी हो,
जुबान पे इन्किलाब, और हौसला बुलंदी हो II

बिना झुके, बिन हटे, बिन समझौता, क्या कभी सुलह हुआ है ?
घोटाली आंकठ में डूबी सत्ता का, क्या कभी विलय हुआ है ?
नसों में खौलती जूनून से, क्या कभी तर्क पर विजय हुआ है ?
दिल में फितरत तो सही , क्या कभी इतिहास अजय हुआ है ?

VI
सवाल ढेरों हैं मन में, पर निस्फिक्र नवयुवको की भागीदारी को,
कार्यकर्त्ताओं की जिम्मेदारी को, अख़बारों की तरफदारी को ,
आंदोलोन की प्रतिनिधित्वता को, प्रतिक्रियाओं की विविधता को ,
सलाम करते है हम, अपने देश के संविधान की सर्वप्रेक्ष्यता को II

संदेह से घिरे हैं, पर दोस्तो के संग फिलहाल के वाद-विवाद को,
टीवी स्टूडियो में सजाये अभिवाद को, लोकतान्त्रिक प्रतिवाद को,
शांतिप्रेमी वीकेंड गांधीवाद को, हक के वास्ते गुर्राती जनउन्माद को,
सलाम करते है हम, आखिरी लम्हों के सार्थक संसदीय संवाद को II

VII
एक हीरो की महज़ तलाश थी, जिसने हक की मांग दोहराई है
चाहे कुछ भी हो, इतिहास गवाह है - अन्ना ने बिगुल बजाई है I
आशंका के दायरे में सही, एक सही - सच्ची उम्मीद जताई है,
विधि निर्माण में, आज व्यापक दायरे तलाशने की बारी आई है II

जरिया विवादास्पद सही, जनता-सरकार में सहमति बनाई है,
लोकपाल दुरुस्त और प्रभावी बने, यही जनसंघर्ष की लड़ाई है I
भ्रस्टाचार से कराहती जनता के, दशकों की चुप्पी की विदाई है
हो सकता है, राजघाट में कब्र तले, गाँधी जी ने ली जम्हाई है II

मानो ना मानो, आज फिर भारतीय लोकतंत्र ने ली अंगड़ाई है I
मानो ना मानो, आज फिर भारतीय लोकतंत्र ने ली अंगड़ाई है II

-------------------कौशल किशोर विद्यार्थी

5 comments:

Unknown said...

बहुत खूब! लाजवाब!

Unknown said...

बहुत खूब! लाजवाब!

Archana said...

Kya likha hai bhai...mann khush kar diya padha ke :)

Anand said...

Thoda lamba hai lekin auchha hai :)

Unknown said...

Great. Excellent Sir.