आज हम जिंदा है, नकाबी कायरों के बख्से गए वहशी वरदानों से,
खुदा की मेहरबानी समझो, महफूज हैं हम तबाही के ठिकानों से I
न जाने कब शिकार हो जायें, किसी अनजान नाइट्रेट के निशानों से,
वारदाती विधानों से, या फिर ब्रीफकेस में बंद चंद अरमानों से II
क्या आंसू कभी धुल पाता है, चौराहों पे चार तैनात जवानों से,
उच्च-स्तरीय अधिकारिक बैठक, बेतरतीब बेबुनियाद बहानों से I
क्या सच्चा मलहम लग पाता है,'जांच जारी है' के गूंगे बयानों से,
पूछताछ, हिरासत, नाकाबंदी, पुलिस के झुठलाये अभिमानों से II
चंद महीनों का सन्नाटा भी मुमकिन नहीं, 'लश्कर' के पैमानों से,
बेकसूर, बेजान, बिलखते घायलों और अधमरों के परिधानों से I
हताश आज हम सभी हैं, बमों की गूँज से, आतंक के दुकानों से,
अफरातफरी के सिलिसिलाओं से, कर्कश कहर के पायदानों से II
क्या हम सुरक्षित हो पाएंगे, पुख्ता इंतजाम का ढाढस बढाने से,
'डब्बों' पर अत्यंत गहरा, हर बार राष्ट्रीय राजकीय शोक जताने से I
कब तक बच पाएंगे प्रबंध को, घटना को बस दुर्भाग्यपूर्ण बताने से,
कफ़न में लिपटी लाश को शुकुन कहाँ, अज्ञात आशंका सजाने से II
धमाको को दायरा कभी छोटा नहीं होता, यु ही मुआयना कर जाने से,
संदिग्धों के स्केच जारी, हर सुराग पे इनामी घोषणा कर पाने से I
शायद कभी देश बदला है, बिन ज़िम्मेदारी बेमानी नीति लाने से,
आमूल परिवर्त्तन नहीं होता, करीबी अस्पताल का दौरा कर आने से II
सैकड़ों मौत से सरकार सुधरती नहीं,ना दिनदहाड़े दिल्ली दहल जाने से,
शायद बदलाव की बयार बहे, कभी एकबारगी हजारों के मारे जाने से I
और गुनाहगार के गिरेबान दिखे, केवल जबरदस्त जनविरोध आ पाने से,
तब तक हर रोज़ हर महीने, उपाय नहीं, आतंक के साये में जी पाने से II
-------------------------------------कौशल किशोर विद्यार्थी
3 comments:
wonderful writing; includes actual facts... appreciate your voice against terror.
Regards,
Rahul Pathak
Good
Good
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