Monday, May 07, 2007

Oxford की सुंदरता

I wrote this poem specifically for the Oxford audience for the "Malhaar'-annual event of Oxford Indian Society (OIS). This is a take on lighter side of personal living experiences in Oxford.
Oxford की ऐसी सुंदरता बोलो

हँसकर कहने को तीन term रोने को आठ हफ्ता बोलो
किसकी मजाल जो कह दे, पढ़ना यहाँ सस्ता बोलो
निकलता हूँ Bodleian को, पकड़ता हूँ Turf का रास्ता बोलो
जागता हूँ रातभर, मगर ओम
Facebookay नमः हूँ रटता बोलो
Oxford की ऐसी सुंदरता बोलो

ना कोई Attendance फिर भी हूँ हर Lecture सुनता बोलो
पता नहीं क्या खाते Professor, कोई बीमार नहीं पड़ता बोलो
शर्त है सारे College का नाम कोई नहीं कह सकता बोलो
इतनी भी memory नहीं, फिर भी शान से अकड़ता बोलो
Oxford की ऐसी सुंदरता बोलो

लोग Exams से डरते हैं, मैं तो Essay लिखने से मरता बोलो
मैं ही धोबी, मैं ही Cook कौन है इतनी मिहनत करता बोलो
छात्र यहाँ सिर्फ Gown पहन भी है, Punting करता बोलो
बगल के कमरे में बैठे पड़ोसी से Skype पे Chatting करता बोलो
Oxford की ऐसी सुंदरता बोलो

बिन गाय सड़क, बिन बंदर चौराहा, है सब सूना लगता बोलो
इक Tyre Puncture को पाँच Pound का चूना लगता बोलो
ना कोई रैली, ना हंगामा, ना अपने लालू सा नेता बोलो,
चार लोगों के धरने को आठ पुलिस है पहरा देता बोलो
Oxford की ऐसी सुंदरता बोलो

इक ही आदमी इक ही जगह Big Issue ले पड़ा सड़ता बोलो
हर जगह इतने नखरे नियम, किसको नहीं अखड़ता बोलो
इतना बड़ा दुमंजिला बस, पता नही सब Tube क्यूं कहता बोलो
हम तो दिये जलाते थे दीवाली पे, यहाँ पर Bop क्यूं रहता बोलो
ो्फोरद की ऐसी सुंदरता बोलो

जहाँ तहाँ छप्पन Events तो, पग पग पे इतिहास सँवरता बोलो
थोड़ी धूप क्या खिली, इक रुमाल से है तन ढ़कता बोलो
George Street को भूल भी जाओ तो Sansbury की महत्ता बोलो
बिन Bod Card औ बिन Supervisor के यहाँ कोइ क्या रह सकता बोलो
Oxford की ऐसी सुंदरता बोलो

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