कवि हूं, कविता करता हूँ ,
घर बैठे समंदर और सरिता भरता हूँ,
अमावास की रात ना सही, उजाले पर मचलता हूँ
व्हिस्की हो महँगा तो, ठर्रे पर अटकता हूँ,
पेट में रेफ्रीजेरेटर तो, दिल में हीटर रखता हूँ,
नाम हो ललिता तो, 'लोलिता' पढता हूँ,
कवि हूं, कविता करता हूँ I
बाहें हो, आहें हो, राहें हों, निगाहें हों,
आग हो, धुंआ हों, पठार हो, कुआं हो,
पुण्य हो, पाप हो, या गधे का बाप हो,
जात हो, पात हो, समस्या का निजात हो,
लाचार हो, चौकीदार हो, मुरब्बा या अचार हो
छोटा हो, खोटा हो, गरीब का लोटा हो
थाली हो, गाली हो, पड़ोसन की साली होहर कुछ पे मरता हूँ, हर कुछ पे लिखता हूँ,
कवि हूं, कविता करता हूँ I
कवि हूं, कविता करता हूँ II
1 comment:
hi. Im from The Telegraph, Calcutta and would like to cover ur blog for a column i write. This will be featured in the Jharkhand edition. Could you please get back to me at suchiarya@abpmail.com
Thanks
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