Thursday, June 21, 2007

कुछ तो सोच लूँ

कुछ तो सोच लूँ
कहीँ सोच कर कुछ कर लूँ
हो सकता है
सोच प्रवृत्ति बदल दे
और
प्रवृत्ति जिंदगी बदल दे
मगर
अनमने निष्प्राण सोच को
रंग कैसे दे कोई
ये तो भी सोचने को है
कुछ तो सोच लूँ ॥

वक्त बीतता चला
ठहरे पलों में माना
कुच सोच भी लिया
सोच कर बैठ जाना ही तो
नियति नहीं
सोच को हराकर
पौधे का रूप देना
आसान तो नहीं
इसे आंसा कैसे बनाया जाये
ये तो भी सोचने को है
कुछ तो सोच लूँ ॥

मान लो चल दिये
किसी डगर पर
मगर
हर डगर सीधी तो नहीं
कोई तो रोके
कोई तो टोके
बीच डगर पर
संभाले और ले चले
मंजिलें जिंदगी की
वो कौन होगा, कैसा होगा
ये तो भी सोचने को है
कुछ तो सोच लूँ ॥

No comments: