कुछ तो सोच लूँ
कहीँ सोच कर कुछ कर लूँ
हो सकता है
सोच प्रवृत्ति बदल दे
और
प्रवृत्ति जिंदगी बदल दे
मगर
अनमने निष्प्राण सोच को
रंग कैसे दे कोई
ये तो भी सोचने को है
कुछ तो सोच लूँ ॥
वक्त बीतता चला
ठहरे पलों में माना
कुच सोच भी लिया
सोच कर बैठ जाना ही तो
नियति नहीं
सोच को हराकर
पौधे का रूप देना
आसान तो नहीं
इसे आंसा कैसे बनाया जाये
ये तो भी सोचने को है
कुछ तो सोच लूँ ॥
मान लो चल दिये
किसी डगर पर
मगर
हर डगर सीधी तो नहीं
कोई तो रोके
कोई तो टोके
बीच डगर पर
संभाले और ले चले
मंजिलें जिंदगी की
वो कौन होगा, कैसा होगा
ये तो भी सोचने को है
कुछ तो सोच लूँ ॥
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