Thursday, June 21, 2007

तीन शब्द

सुबह की हर पहली किरण से
रात की कालिमा तक,
भावनाओं की हर परतों को लांघती
वो तीन शब्द ॥
इक एहसास जगाती है
कोई इसे बेमानी
तो कोई रोजमर्रा की रीत करार देती है ‌
मगर भाव तो भाव है
औ इन तीन शब्दों में बसी हर गुँज
मन की कोरों से सजी होती है,
कोई माने या ना माने
हर जवाब में वही तीन शब्द
कुछ तो कह देती है
हो ना हो, पल के लिये सही
मान लेता हूँ
जुबाँ से निकली हर आवाज झूठी नहीं होती है ‌
कुछ तो सच होगा
इस आस मे अगर बीत जाये जिंदगी तो
क्यूँ ना कहूँ
हर सुबह, हर मुलाकात मे
तीन शब्द ॥

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