Thursday, December 20, 2012

ओ री दिल्ली !

ओ री दिल्ली !
तेरी चेतना पर   हो रहा प्रहार है,
मानो मानवीय संवेदना  का संहार है !
तेरा आँगन,  पीड़ित है, शर्मसार है ,
आज ग्लानी से,  बेबस है, लाचार है !!

ओ री दिल्ली !
क्या हो गया, तुझमे शक्ति नहीं,
हया से, वेदना से, विरक्ति नहीं !
तुझसे सम्मान नहीं, मुक्ति नहीं,
अधिकार की अभिव्यक्ति नहीं !!

ओ री दिल्ली !
कोख में दरिंदो को, तू पालती क्यूँ ,
कीचर खुद पे यु, तू उछालती क्यूँ !
लकीर लज्जा की, तू लांघती क्यों
रसीद यातना की, तू संभालती क्यूँ !!

ओ री दिल्ली !
क्या तुझे कुछ भी, आज आभास है
चहुऔर बन रहा, खूब उपहास है !
कैसी तरक्की, कौन सा विकास है, 
बस असुरक्षा है, और अविश्वास है !!

ओ री दिल्ली !
अपने न्याय का, तू पैमाना बदल,
अभिप्राय का,  तू फ़साना बदल !
जालिमों का, तू जुरमाना बदल,
जोखिमों का, तू जमाना बदल !!

ओ री दिल्ली !
तू घोषणाओं  का अकाल अंत कर,
चौराहा- चौकसी का प्रबंध कर !
दुस्साहसी दुस्कर्मियों को दंड कर, 
जल्द कर, भीषण कर, प्रचंड कर!!


ओ री दिल्ली !
अंत कुधातुओं का, तू सुनिश्चित कर,
हर  आँसूओं का,  तू प्रायश्चित कर !
जूनून आवाम का,  तू कमतर कर,
शुकून शाम का,  तू बेहतर कर !! 

ओ री दिल्ली !
जूनून आवाम का,   तू कमतर कर,
शुकून शाम का,    तू बेहतर कर !!
------------------ कौशल किशोर विद्यार्थी