ओ री दिल्ली !
तेरी चेतना पर हो रहा प्रहार है,
मानो मानवीय संवेदना का संहार है !
तेरा आँगन, पीड़ित है, शर्मसार है ,
आज ग्लानी से, बेबस है, लाचार है !!
ओ री दिल्ली !
क्या हो गया, तुझमे शक्ति नहीं,
हया से, वेदना से, विरक्ति नहीं !
तुझसे सम्मान नहीं, मुक्ति नहीं,
अधिकार की अभिव्यक्ति नहीं !!
ओ री दिल्ली !
कोख में दरिंदो को, तू पालती क्यूँ ,
कीचर खुद पे यु, तू उछालती क्यूँ !
लकीर लज्जा की, तू लांघती क्यों
रसीद यातना की, तू संभालती क्यूँ !!
ओ री दिल्ली !
क्या तुझे कुछ भी, आज आभास है
चहुऔर बन रहा, खूब उपहास है !
कैसी तरक्की, कौन सा विकास है,
बस असुरक्षा है, और अविश्वास है !!
ओ री दिल्ली !
अपने न्याय का, तू पैमाना बदल,
अभिप्राय का, तू फ़साना बदल !
जालिमों का, तू जुरमाना बदल,
जोखिमों का, तू जमाना बदल !!
ओ री दिल्ली !
तू घोषणाओं का अकाल अंत कर,
चौराहा- चौकसी का प्रबंध कर !
दुस्साहसी दुस्कर्मियों को दंड कर,
जल्द कर, भीषण कर, प्रचंड कर!!
ओ री दिल्ली !
अंत कुधातुओं का, तू सुनिश्चित कर,
हर आँसूओं का, तू प्रायश्चित कर !
जूनून आवाम का, तू कमतर कर,
शुकून शाम का, तू बेहतर कर !!
ओ री दिल्ली !
जूनून आवाम का, तू कमतर कर,
शुकून शाम का, तू बेहतर कर !!
------------------ कौशल किशोर विद्यार्थी
1 comment:
BAHUT UTTAM RACHNA
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