Sunday, July 27, 2014

ये जो उबाल है, इसे मिट जाने दो


नफरत के धुआँ से, जब शहर का आसमां काला  होता है, 
ज़ख्मों के लिफ़ाफ़े में, हर पहर पर,  एक ताला होता है I 
उन्माद के ढेर पर, सदैव शंका-संदेह का पहरा लगता है, 
दंगों के दाग का रंग, पक्का और बहुत गहरा लगता है II 

पथराव की आंधी में, क्या केवल कार का शीशा फूटता है?
देहात से शहर तक, सदियों का सद्भाव-सौहार्द्र टूटता है I 
तनाव की कशिश में, बस, हर फासला पथरीला होता है,
दंगों की तपिश में, मानो, सारा फ़िज़ां ज़हरीला होता है II 

तिरंगा दिल में हो तो, हिन्दुस्तानियत का प्रमाण होता है, 
केवल कर्फ्यू से कभी क्या,  सख़्ती का पैमान होता है ?
अख़बार की सुर्ख़ियों में, बस लहू का ढेरों निशान होता है,
दंगों की चपेट में, चहकता चौराहा भी सुनसान होता है II 

हुकूमत के फरमान से, क्या विश्वास का जूनून पलता  है,
मुआवज़े के एलान से, कभी क्या कोई सुकून मिलता है I 
अलगाव में, भेदभाव में,  हंगामों का, बस तूफ़ान होता है, 
दंगों का चरित्र नहीं, वजह कोई भी, बस नुकसान होता है II 

अपनों के खोने का ग़म,  हर मज़हब में बस एक-सा होता है,
बचपन में बिखरी लाशों पे, क्या चोट का रंग अनेक होता है?
हिंसा की कोई भाषा नहीं, इसमें केवल दर्द और दर्द होता है,
दंगों का आलम तो, हमेशा ग़मगीन और बहुत सर्द  होता है II 

गवाह क्या? गुनाह कैसा? हर चुप्पी का,  एक दाम होता है,
बयान में बदले का जज्बा हो, तोड़-फोड़ ही अंजाम होता है I
मामूली विवाद से शहर जले तो, पूरा अमला नाकाम होता है,
'दंगों की आग में हालात बेकाबू', चिनगारी का नाम होता है II 

II 
आज गुज़ारिश तुमसे भी है, गुज़ारिश खुद से भी है,
देश के दामन में, फिर से कोई आग न सुलगने दो,
होश सम्भालना मुश्किल ना हो, मसला सुलझने दो 
गाड़ियां फूंकने की रीत को, रवैये को, झुलसने दो,
संकरी गलियों में, झड़प का सिलसिला रुकने दो,
'सबक' सिखाने को तैयार, जो उभार है, बदलने दो,
अमन का, संयम का, विश्वास का, दौर संवरने दो,
चेतावनी और भय छोड़, गहरी चिंता जता आने दो,
'शांति बहाल हो',  बयान का ज़िक्र कर आने दो,
नाज़ुक संवेदनाओं का, फिर से फ़िक्र कर आने दो II 

अफ़सोस मुझे भी हो, अफ़सोस तुम्हे भी हो,
सचेत हम भी रहें ,   सचेत तुम भी रहो ,
निडर हम भी रहें,   निडर तुम भी रहो, 
ना तैनाती इधर हो, ना तैनाती उधर हो,
सांप्रदायिक तत्वों की पूरी शिनाख़्त हो,
अराजकताओं का, मूल-समूल विनाश हो,
हमारे इरादों में शालीनता का सम्मान हो,
हमारे अर्जियों में सच्चाई और ईमान हो II 

ये जो बवाल है, इसे बुझ जाने दो I 
ये जो मलाल है, इसे धूल जाने दो I 
ये जो ख़याल है, इसे मर जाने दो  I 
ये जो उबाल है, इसे मिट जाने दो II 
---------------------कौशल किशोर विद्यार्थी 

3 comments:

Unknown said...

Truely an inspirational poem sir.
It feels excellent and proud that studying in Oxford University for many years and you have been out of the country so many years but still you wrote the poem that to in hindi.

Ankush Choubey
Sagar(M.P)

Unknown said...

Good
Apurva Rani (Bihar)

Anonymous said...

सुपर